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क्‍या देश में आजादी के इतने साल बाद भी दी जाती है नरबलि? असम पुलिस की जांच के बाद फिर छिड़ी बहस

Human Sacrifice: देश की आजादी के बाद से लेकर आज तक भले ही शिक्षा के स्‍तर में सुधार आया हो या लोग पहले के मुकाबले ज्‍यादा जागरूक हो गए हों, लेकिन आज भी कुछ ऐसी प्रथाएं जस की तस चली आ रही हैं, जो किसी भी सभ्‍य समाज को कलंकित करने के लिए काफी हैं. हर साल देश के अलग-अलग इलाकों से ऐसी ही एक क्रूर प्रथा नरबलि की घटनाएं सामने आती रहती हैं. हाल में असम पुलिस ने एक महिला की बलि देने के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है. असम पुलिस ने चार साल चली लंबी जांच और दर्जनों लोगों से पूछताछ के बाद मामले के आरोपियों को गिरफ्तार किया है. इससे पहले केरल, छत्‍तीसगढ़ और झारखंड से भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं.

छत्‍तीसगढ़ के रायुपर में हुई नरबलि की घटना के आरोपी तांत्रिक को फांसी की सजा हुई. वहीं, केरल में दो महिलाओं की नरबलि दी गई. झारखंड में तब हद हो गई, जब दो मासूम बच्‍चों को नरबलि का शिकार बनाया गया. बता दें कि बंगाल में पहले काली पूजा के मौके पर नरबलि देने की कुप्रथा थी. इसके खिलाफ 1828 से 1833 तक बंगाल के गवर्नर जनरल रहे विलियम बेंटिक ने अभियान चलाया और इस कुप्रथा का अंत किया. फिर भी ये कुप्रथा आज भी जस की तस चली आ रही है.

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नरबलि के खिलाफ क्‍या कहता है कानून
आप ये जानकर चौंक सकते हैं कि अंधविश्‍वास और जादू-टोने से जुड़े मामलों से निपटने के लिए देश के सिर्फ आठ राज्‍यों में ही कानून बनाए गए हैं. सबसे अजीब बात ये है कि 1999 के बाद लागू किए गए इन कानूनों में काला जादू या अंधविश्‍वास को परिभाषित ही नहीं किया गया है. आठों राज्‍यों में इससे जुड़े मामलों में सजा का प्रावधान भी अलग-अलग है. केरल में काला जादू और टोना को रोकने के लिए 2019 में एक बिल पेश किया गया, जो अब तक पारित नहीं हो पाया है. हालांकि, कई संस्‍थाएं लगातार देश में एक राष्‍ट्रीय कानून लागू करने की मांग कर रही हैं.

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देश के सिर्फ 8 राज्‍यों में काला जादू और टोना-टोटका के मामलों से निपटने के लिए कानून बनाया गया है.

कहां-कहां लागू हैं इसके खिलाफ कानून
बिहार में सबसे पहले महिलाओं को डायन बताकर प्रताड़ित किए जाने के खिलाफ कानून बनाया गया. झारखंड में भी ऐसा ही कानून है. झारखंड में 2005 में किसी महिला या पुरुष को टोनही घोषित करने के खिलाफ कानून बनाया गया. ओडिशा में प्रिवेंशन ऑफ विच हंटिंग एक्ट, 2013 लागू है. राजस्थान में प्रिवेशन ऑफ विच हंटिंग एक्ट 2015 लागू है. असम में भी अंधविश्‍वास के खिलाफ कानून लागू है. महाराष्ट्र में एंटी सुपरस्टीशन एंड ब्लैक मैजिक एक्ट 2013 लागू है. कर्नाटक में अंधविश्‍वास रोधी कानून, 2020 लागू है. सजा भी इतनी सख्‍त नहीं है, जो लोगों में डर पैदा कर सके.

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असम में बार-बार होती हैं ऐसी घटनाएं
असम में 2021 में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जब एक तांत्रिक ने चार साल के बच्‍चे की नरबलि चढ़ा दी थी. साल 2020 में भी बराक घाटी में एक 55 साल के व्‍यक्ति की बलि चढ़ाने का मामला सामने आया था. इस मामले में पुलिस ने 11 लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनमें तीन महिलाएं भी शामिल थीं. असम में सामने आए हालिया मामले में राजधानी गुवाहाटी में एक महिला की बलि चढ़ाने का आरोप था. पुलिस ने चार साल पहले हुई इस घटना की जांच के दौरान दर्जनों लोगों से पूछताछ की और आखिर में पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. गुवाहाटी के पुलिस आयुक्‍त दिगंत बोरा ने बताया कि नरबलि का शिकार हुई महिला पश्चिम बंगाल के हुगली जिले की थी.

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देश की राजधानी भी नहीं रही अछूती
अक्‍टूबर 2022 में दिल्‍ली में एक बच्‍चे की बलि देने का मामला सुर्खियों में रहा था. दिल्‍ली पुलिस की जांच में सामने आया कि दोनों आरोपी मजदूरी करते थे. उन्‍होंने पैसा पाने के लालच में अफीम का नशा कर बच्‍चे की हत्‍या कर दी थी. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में मार्च 2023 में ही ऐसी एक घटना सामने आई थी. कोलकाता पुलिस ने 7 साल की बच्‍ची की बलि देने के आरोप में एक व्‍यक्ति को गिरफ्तार कर लिया था. अक्‍टूबर 2022 में केरल पुलिस ने डॉक्‍टर दंपति और एक तांत्रिक को दो महिलाओं की बलि देने के आरोप में गिरफ्तार किया.

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कामाख्‍या देवी मंदिर और आसपास के इलाकों में नरबलि की परंपरा कभी नहीं रही है.

नरबलि पर क्‍या कहते हैं इतिहासकार-विद्वान
कामाख्‍या देवी मंदिर और आसपास के इलाकों में नरबलि की परंपरा कभी नहीं रही है. कामाख्‍या बार देउरी के सचिव भपूश कुमार शर्मा ने डायचे वैले को बताया कि किसी जमाने में कामाख्‍या देवी मंदिर के आसपास दुर्गापूजा के समय नरबलि की परंपरा की कहानियां जरूर सुनने को मिलती हैं. लेकिन, अंबुवाची मेले के दौरान नरबलि की परंपरा निभाने का कभी कोई जिक्र नहीं मिलता है. ‘कामाख्‍या: एक समाज-सांस्‍कृतिक अध्‍ययन’ किताब के लेखक निहार रंजन मिश्र के मुताबिक, कुछ पौराणिक ग्रंथों में नरबलि का जिक्र है, लेकिन यह परंपरा बहुत पहले ही खत्‍म हो गई है. असम में 15वीं सदी के नव-वैष्‍णव सुधार के बाद ये पूरी तरह खत्‍म हो गई थी.

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कैसे रोकी जा सकती है नरबलि की कुप्रथा
सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक, नरबलि जैसी कुप्रथाओं को रोकने के लिए सिर्फ कानून बना देने से कुछ नहीं होगा. अगर कानून बनाने से इस पर रोक लग पाती तो आठ राज्‍यों में खत्‍म हो गई होती, जबकि सबसे ज्‍यादा नरबलि की घटनाएं इन्‍हीं राज्‍यों में सामने आती हैं. केरल सरकार भी कह चुकी है कि नरबलि को सिर्फ कानून बनाकर नहीं रोका जा सकता है. इसके लिए सामाजिक जागरूकता की जरूरत है. सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक, कुप्रथाओं की जड़ें पिछड़ेपन, निरक्षरता और मानसिकता से जुड़ी होती हैं. बिना पढ़े-लिखे, गरीब और भोले-भाले लोग ओझा व तांत्रिकों के झांसे में आकर हत्‍या जैसे अपराधों को अंजाम देते हैं. इसे रोकने के लिए लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है.

Tags: Black magic, Cruel murder, Dharma Aastha, Human Sacrifice

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