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government is not paying attention to the condition of farmers cpim serious allegations on pm modi ‘किसानों की हालत पर ध्यान नहीं दे रही सरकार’, माकपा ने बजट से पहले केंद्र पर लगाया गंभीर आरोप

Farmer budget 2023- India TV Hindi
Photo:INDIA TV ‘किसानों की हालत पर ध्यान नहीं दे रही सरकार’

Kisan Budget 2023 New Update: 1 फरवरी को केंद्र सरकार देश का आम बजट पेश करने जा रही है। 26 जनवरी को हलवा सेरेमनी के साथ बजट प्रिंटिंग की प्रक्रिया भी शुरु हो गई। बजट से जुड़े एक्सपर्ट के मुताबिक, सरकार का फोकस किसान और उनकी खेती पर रहने वाला है, लेकिन सरकार बजट पेश करने उससे पहले ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने आरोप लगाया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी कोविड महामारी के दौरान लगे झटके से उबर नहीं पाई है। इसके साथ ही माकपा ने महामारी के विनाशकारी प्रकोप से निपटने के तौर-तरीकों को लेकर सरकार की आलोचना भी की है। माकपा के मुखपत्र ”पीपुल्स डेमोक्रेसी” के ताजा संपादकीय में सरकार से मांग की गई है कि कराधान और सार्वजनिक व्यय का उपयोग मेहनतकश जनता के पक्ष में, किसानों की आय में सुधार, रोजगार पैदा करने और बेहतर स्वास्थ्य तथा शिक्षा के लिए किया जाना चाहिए। 

CPI on Budget 2023

Image Source : FILE

इस समय भारतीय और विश्व दोनों की अर्थव्यवस्थाएं गंभीर हालात का सामना कर रही हैं।

सरकार को इन बातों पर देना होगा ध्यान

पार्टी ने कहा है कि वित्त वर्ष 2023-24 का बजट ऐसे समय में पेश किया जाने वाला है जब भारतीय और विश्व दोनों की अर्थव्यवस्थाएं गंभीर हालात का सामना कर रही हैं। संपादकीय के मुताबिक, मोदी सरकार के लंबे-चौड़े दावों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था अभी तक कोविड महामारी के प्रकोप और जिस विनाशकारी तरीके से इसे भारत सरकार ने संभाला है, उससे उबर नहीं पाई है। इसमें कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों का ‘नवउदारवादी भूमंडलीकरण’ अपने विरोधाभासों की वजह से निष्प्रभावी हो गया है लिहाजा भारत को न केवल एक अस्थायी वैश्विक मंदी के लिए, बल्कि लंबे पूंजीवादी संकट की आशंका के लिए भी खुद को तैयार करना है। संपादकीय में दावा किया गया है कि भारत की आर्थिक वृद्धि भी इन विरोधाभासों को दर्शाती है। यही कारण है कि उच्च वृद्धि के दौर में भी कृषि संकट, मजदूरी में ठहराव और बेरोजगारी की बढ़ती समस्या देखने को मिल रही है। 

CPI on Budget 2023

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श्रमिक वर्ग के गहन शोषण और असमानता में भारी वृद्धि हुई है।

आम लोगों को हो रही परेशानी

इससे श्रमिक वर्ग के गहन शोषण और असमानता में भारी वृद्धि हुई है। संपादकीय में कहा गया कि पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार 2022-23 में भारत की वास्तविक प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय महामारी से पहले के मुकाबले सिर्फ 2.4 प्रतिशत अधिक रहने वाली है। यह आंकड़ा प्रति वर्ष एक प्रतिशत से कम की वृद्धि दर्शाता है। जबकि इस दौरान मुद्रास्फीति की दरों में तीव्र वृद्धि हुई है। माकपा का मुखपत्र कहता है कि औद्योगिक क्षेत्र भी बड़े संकट को दर्शा रहा है, जहां 2022-23 में विनिर्माण क्षेत्र में केवल 1.6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। पार्टी ने आरोप लगाते हुए कहा है कि मोदी सरकार के वर्ग-पक्षपाती रवैये के चलते पुनरुद्धार बेहद असमान रहा है।

ये भी पढ़ें: पहले ही बजट में भारत सरकार को हुआ था 24.59 करोड़ रुपये का घाटा, आज ट्रिलियन डॉलर की है देश की इकोनॉमी

 

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