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पर्यावरण मंत्रालय पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी- आपको पर्यावरण मंत्रालय की तरह ही काम करना चाहिए

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को पर्यावरण मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) के बारे में दो टूक टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि हाल के दिनों में पर्यावरण मानकों को लगातार कमजोर किया गया है और पर्यावरण मंत्रालय को पर्यावरण मंत्रालय की तरह काम करना चाहिए. 2019 में दिए गए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की एक अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा, “आपको अनिवार्य रूप से दर्शाना चाहिए कि यह मंत्रालय पर्यावरण के लिए है, ना कि पर्यावरण का मंत्रालय है. आपने लगातार पर्यावरण मानकों को कमजोर किया है.”

एनजीटी ने मंत्रालय के 2017 की अधिसूचना में खामियां निकाली थीं. इस अधिसूचना में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स द्वारा अपशिष्ट निर्वहन के लिए नए मापदंड निर्धारित किए गए थे. एनजीटी ने कहा था कि नए नोटिफिकेशन के चलते पानी की गुणवत्ता में कमी आएगी. साथ ही एनजीटी ने एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिशों के आधार पर सख्त मानकों के पालन का सुझाव दिया था.

हालांकि एक्सपर्ट कमेटी ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STP) के लिए सात वर्षों का टाइम फ्रेम निर्धारित किया था, जिसके तहत मौजूदा एसटीपी को हायर सीवेज ट्रीटमेंट मानकों को अपनाना था. लेकिन, एनजीटी ने एसटीपी को ऐसे मानकों को बिना किसी देरी के लागू करने को कहा. एनजीटी ने यह भी कहा था कि मेगा और मेट्रोपोलिटन शहरों के लिए निर्धारित मानक देश के अन्य हिस्सों में भी लागू होंगे.

केंद्र सरकार ने एनजीटी के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था और मांग की थी कि एनजीटी के फैसले पर तत्काल रोक लगाई जाए. सोमवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एनजीटी के आदेश पर तत्काल रोक लगाए जाने की मांग पर सवाल किया. बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और एस. रवीन्द्र भट्ट भी शामिल हैं.

केंद्र की ओर से सुनवाई पर पेश हुई अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से बेंच ने पूछा, “आप किस तरह की रोक चाहते हैं? क्या और ज्यादा प्रदूषण होना चाहिए? प्रदूषण को कम रखने में क्या बुराई है. ट्रिब्यूनल के आदेश ने यह सुनिश्चित किया है कि पानी में प्रदूषण की मात्रा कम हो.”

हालांकि भाटी ने यह बताने की कोशिश की एनजीटी ने अपनी ही एक्सपर्ट कमेटी के सुझावों को नहीं माना है और एसटीपी को तत्काल अपग्रेड करने के लिए कहा है, साथ ही अपशिष्ट निर्वहन के लिए सख्त मानकों के पालन की बात भी कही है. उन्होंने कहा कि अपग्रेडेशन में समय लगेगा और मंत्रालय ने इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए 2017 का नोटिफिकेशन जारी किया था.

इस पर बेंच ने कहा कि ‘नहीं, हम आदेश पर रोक नहीं लगाएंगे. आपको भी पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए.’ बेंच ने कहा कि वे सिर्फ एनजीटी के समक्ष याचिका लगाने वाले याचिकाकर्ता और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी करेंगे. बता दें कि हाल के दिनों में पर्यावरण, वन और क्लाइमेट चेंज मंत्रालय के कुछ फैसलों की पर्यावरणविदों ने कड़ी आलोचना की है, इनमें से कुछ फैसलों को तो कोर्ट में भी चुनौती दी गई है.

मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार के 2013 के एक नोटिफिकेशन पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी, जिसमें 100 किलोमीटर से कम लंबे राष्ट्रीय राजमार्गों को चौड़ीकरण के लिए पर्यावरण मंजूरी से छूट दे दी गई थी. कोर्ट ने मंत्रालय से यह भी पूछा था कि 2011 में आदेश होने के बावजूद अब तक पर्यावरण मंजूरी के लिए स्वतंत्र नियामक का गठन क्यों नहीं किया गया है. ये मामला कोर्ट के सामने तब आया था, जब कोर्ट पश्चिम बंगाल सरकार के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, इस याचिका में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 356 पेड़ों को काटकर पांच रेल ओवरब्रिज के निर्माण से जुड़े फैसले को चुनौती दी गई थी.

इसी तरह चार धाम सड़क चौड़ीकरण का मामला भी है. शीर्ष कोर्ट ने सितंबर 2020 में निर्देश दिया था कि सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर होनी चाहिए, जैसा कि सड़क परिवहन और हाइवे मंत्रालय के 2018 के नोटिफिकेशन में कहा गया है. बाद में मंत्रालय ने अपने आदेश में बदलाव करते हुए रोड की चौड़ाई को 10 मीटर कर दिया और कोर्ट से फैसले पर पुनर्विचार के लिए कहा. ये पुनर्विचार याचिका अभी भी कोर्ट में पेंडिंग है.

2018 में पर्यावरण मंत्रालय ने तटीय इलाकों से जुड़े नियमों में बदलाव करते हुए बिना मंजूरी के तटीय इलाकों में शुरू हुए प्रोजेक्ट्स को राहत दी थी.

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