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..तो आप कपड़े खरीदने जा रहे हैं ! – manoj malayanil blog on save nature with clothes | – News in Hindi

महात्मा गांधी ने कहा था कि पृथ्वी हर मनुष्य की जरूरत को पूरा कर सकती है लेकिन पृथ्वी मनुष्य के हर लालच को पूरा नहीं कर सकती है. हम आज ऐसी ही दुनिया देख रहे हैं जहां भोग-विलास में लोग इस कदर डूबे हुए हैं कि उन्हें ये पता नहीं कि प्रकृति विरोधी उनकी जीवन शैली ने किस कदर पृथ्वी को नुकसान पहुंचाया है. अपनी शान और स्टाइल के सम्मान में कसीदे पढ़ते हुए आपको अक्सर ऐसे लोग मिल जाएंगे जो कहेंगे कि महीने के सभी तीस दिन के लिए उनके पास अलग-अलग कपड़े हैं. मानों एक कपड़े को महीने में दूसरी बार पहन कर आ गए तो हुजूर की इज्जत चली चली जाएगी. लोगों की इस मानसिकता से जिस फैशन बाजार का विस्तार हुआ है वो पर्यावरण पर बहुत भारी पड़ रहा है.

आमतौर पर लोग यही समझते हैं कि आसमान में उड़ते विमान, चौबीसों घंटे सड़क पर दौड़ती लाखों गाड़ियां और अंधाधुंध प्लास्टिक के इस्तेमाल से पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है. पर क्या आप जानते हैं फैशन इंडस्ट्री दुनिया में प्रदूषण फैलाने वाली दूसरी सबसे बड़ी वजह बन गई है ? कपड़े जिस तरह से पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहे हैं उससे आम लोग अभी भी वाकिफ नहीं हैं.

दुर्भाग्य से जो कपड़े प्रकृति को अपूरणीय क्षति पहुंचा रहे, एक रिपोर्ट के मुताबिक उनका इस्तेमाल साल 2010 के मुकाबले 2019 में लोगों ने 60 फीसदी ज्यादा किया, मतलब 10 साल के दौरान लोगों ने 60 फीसदी कपड़े ज्यादा खरीदे.

इंडो-जर्मन सस्टेनेबल फैशन कंपनी कुकून के फाउंडर प्रकाश झा के मुताबिक आमतौर पर लोग जितने कपड़े इस्तेमाल करते हैं उसका लगभग 85% हिस्सा हर साल कूड़ेदान में चला जाता है. इतना ही नहीं इन कपड़ों की सफाई के कारण हजारों टन माइक्रोप्लास्टिक,रसायन और डिटर्जेंट जमीन के नीचे पानी में पहुंच जाते हैं, जिसकी वजह से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है. आने वाले वर्षों में कपड़ों की प्रति व्यक्ति खपत में और बढ़ोतरी का अनुमान है. इसी साल लैक्मै फैशन वीक में सनातन (धर्म) थीम पर सस्टेनेबल फैशन कलेक्शन पेश कर अपनी धूम मचाने वाले प्रकाश झा बताते हैं कि जितना कपड़ों का उत्पादन बढ़ेगा, पर्यावरण के लिए उतना ही खतरा बढ़ेगा. इसकी वजह ये है कि जैसे-जैसे मिडिस क्लास लोगों की संख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे कपड़ों की भी खपत बढ़ रही है. ऐसा अक्सर देखा गया है कि जैसे-जैसे व्यक्ति की आमदनी बढ़ती है वैसे-वैसे इंसान अपने कपड़ों पर खर्च बढ़ाता चला जाता है. क्योंकि कपड़ों को समाज में उसके स्टेटस से जोड़ कर देखा जाता है. भारत में मध्यम वर्ग की क्रय क्षमता लगातार बढ़ी है जिसके कारण कपड़ों की खपत में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. यही वजह है कि भारत जैसे विकासशील देश में पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियां और बढ़ने वाली हैं. सवाल उठता है कि कपड़े किस तरह पर्यावरण पर भारी पड़ रहे हैं?

पर्यावरण को प्रदूषित करने में फैशन इंडस्ट्री का बड़ा हाथ है. हर साल करोड़ों की संख्या में टेक्सटाइल आइटम का उत्पादन होता है. भारत में जो इंडस्ट्रियां पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं उनमें फैशन इंडस्ट्री भी एक है. ऐसे गांव जहां कपास की परंपरागत रूप से खेती होती है, वहां के पानी के स्त्रोत या जल निकाय अत्यधिक टॉक्सिन होने के कारण तेजी से प्रदूषित हो रहे हैं. तमाम तरह के सर्वे और अध्यन बताते हैं कि कपड़े के कारखानों से निकलने वाले जहरीले पानी और कचरे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं. टेक्सटाइल फैक्ट्री से निकलने वाले हानिकारक पदार्थ नदी के पानी को बुरी तरह से प्रदूषित करते हैं. नदी के पानी के ऊपर झाग और गंदगी आ जाने की वजह से सूरज की रोशनी नदी के नीचे तक नहीं पहुंच पाती है जिसकी वजह से पानी के वनस्पतियों और जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा है.

हमारी पसंदीदा जींस की जोड़ी, क्रीज-फ्री शर्ट, साड़ी, दुपट्टा या सलवार-कुर्ते ने नदी-नालों और भूजल को बुरी तरह प्रभावित किया है और हमारी पारिस्थितिकी और जैव विविधता को विनाश के कगार पर पहुंचा दिया है. आप कहेंगे कि ये कैसे हो सकता है कि कपड़े के प्रोडक्शन से प्रकृति को नुकसान पहुंचता है. दरअसल, पॉलिएस्टर शर्ट,पैंट,सलवार- कुर्ता, साड़ी,कंबल या पर्दे पर हमारी निर्भरता और इसके धोने से निकलने वाले सूक्ष्म प्लास्टिक हमारे जल निकायों को प्रदूषित कर रही हैं. ये माइक्रोप्लास्टिक जाने-अंजाने हमारे खाने की चीजों तक पहुंचे हुए हैं.

आपको ये जानकर हैरानी होगी क्रूड ऑयल से पॉलिएस्टर की साड़ियां बनाई जाती हैं. इन्ही साड़ियों के धोने के क्रम में इससे निकलनेवाला माइक्रोफाइबर भूजल, तालाब और नदि नालों तक पहुंच चुका है. एक अनुमान के मुताबिक माइक्रोफाइबर भारतीय जल निकायों को करीब 31% तक प्रदूषित करता है.

इतना ही नहीं कपड़ा और चमड़ा उद्योग से निकलने वाले खतरनाक कचरे और रसायन भारत की नदियों को गंभीर रूप से प्रदूषित कर रहे हैं. दिल्ली, कानपुर, कोलकाता के पास यमुना और गंगा का क्या हाल हुआ ये हम सब देख रहे हैं. उत्तर में ही नहीं देश के बाकी शहरों में भी यही हाल है. तिरुपुर के पास न्योयल नदी, राजस्थान की द्रव्यवती नदी, मुंबई के पास कसादी, मीठी, उल्हास और वालधुनी नदियां या तो खत्म हो चुकी हैं या जहर बन चुकी हैं. इन नदियों के किनारे लंबे समय से बड़े स्तर पर टेक्ससटाइल फैक्ट्री चलती आ रही है.

कपास की खेती में पानी का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है. सिर्फ 1 किलोग्राम कपास के उत्पादन के लिए 20 हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है. हमारे देश में करीब 10 करोड़ लोगों के पास पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है. एक तो पहले से पानी की किल्लत है और कपास की खेती में बड़ी मात्रा में उपयोग होने वाले पानी ने बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन पर और भी ज्यादा दबाव बढ़ा दिया है. ऐसे में कॉटन का अंधाधुंध उत्पादन और उसका इस्तेमाल पर्यावरण के लिए बड़ी चुनौती है. कई विकसित देशों में लगभग एक दशक से इस बात पर चर्चा हो रही है कि पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए फैशन और गारमेंट्स इंडस्ट्री को खतरनाक रसायन के प्रभाव से मुक्त करना होगा. ये तभी संभव होगा जब हम सस्टेनेबल फैशन की तरफ अपना रुख करें.

सस्टेनेबल का मतलब है प्रकृति के साथ विकास. यानी प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना फैशन इंडस्ट्री काम करे. ये तभी मुमकिन हो सकता है जब हम जैविक खेती को अपनाएंगे. कई देशों में जैविक खेती के जरिये फैशन प्रोडक्ट तैयार किए जाते है. इनमें खतरनाक रसायन का इस्तेमाल नहीं होता है.

क्रूड ऑयल से पॉलिएस्टर बनता है और इनसे बनने वाले शर्ट, पैंट्स और साड़ियों सहित तमाम तरह के गारमेंट्स भूजल और हवा को प्रदूषित करते हैं. पॉलिएस्टर के कपड़ों की सफाई के दौरान जो माइक्रोप्लास्टिक और केमिकल निकलते हैं वो सीधे-सीधे भूजल में मिल जाते हैं। ऐसे में पॉलिएस्टर के उत्पादन को सिमित करना पड़ेगा. यूरोप के कई शहरों में अब लोगों ने पुराने कपड़े पहनने शुरू कर दिए हैं. इसे विंटेज फैशन का नाम दिया गया है. आपको याद होगा, पहले लोग जब एक कपड़े को पहन कर ऊब जाते थे तो उसे वो किसी दूसरे परिचित को दे देते थे. कपड़े के पुराने होते-होते उसमें मौजूद रसायन और हानिकारक पदार्थ समाप्त हो जाते थे, जिसे पहनना स्वास्थ्य और प्रकृति की दृष्टि से ठीक माना जाता था. हमारे सामाजिक जीवन का जो ये हिस्सा हमसे दूर हो चुका है उसे यूरोपीय समाज की तरह वापस लाना होगा.

आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि पश्चिम के देशों में बहुत जगह अब कपड़ों की अदला-बदली होती है. इसके लिए पार्टियों का आयोजन होता है, जिसे फैशन स्वाप पार्टी कहा जाता है. यहां लोग अपने पुराने कपड़े लेकर आते हैं और आपस में अदला-बदली करते हैं. आइये प्रकृति के साथ हम जीना सीखें और अपनी भावी पीढ़ियों के लिए एक खूबसूरत दुनिया छोड़ जाएं.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

ब्लॉगर के बारे में

मनोज मलयानिलSr Editor,Bihar,Jharkhand

25 years of experience in radio, newspaper and television journalism. After working with Doordarshan, Sahara TV, Star News, ABP News and Zee Media, currently working as senior editor with News18 Bihar-Jharkhand, a part of country’s largest news network.

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