राष्ट्रीय

राजस्थान के पढ़े-लिखे ये युवा अब ‘इनोवेटिव फार्मर’ बनकर लिख रहे सफलता की कहानी

हाइलाइट्स

एमबीए किसान ने गुलाब की खेती करने के लिए मुंबई की चमक-दमक और 17 लाख का पैकेज छोड़ा
कभी बदल रहे थे नौकरियां, अब इजराइली तकनीक से 10 सब्जियां उगाकर दूसरे किसानों को भी दे रहे जॉब

एच. मलिक

कोटा. कहावत है कि जहां पर चाह हो, राहें खुद-ब-खुद निकल आती हैं, बस सच्ची लगन और मेहनत (Dedication & Hard work) की दरकार होती है. राजस्‍थान में ऐसे ही कुछ युवा हैं, जिन्होंने अच्छी पढ़ाई करके शानदार पैकेज वाली नौकरी को ठुकराकर, सरकारी नौकरी (Government Job) को छोड़कर आधुनिक किसानी को अपनाया. उनकी नवाचार उन्हें दौलत-शोहरत के साथ अवार्ड भी दिला रहे हैं.

आइये, हम आपको कुछ ऐसे ही कामयाब युवाओं की प्रेरित करने वाली कहानियां बताते हैं, जिनकी मेहनत और लगन ने उन्हें बिल्कुल नये क्षेत्र में नये मुकाम तक पहुंचाया है. वे अब दूसरे युवाओं के लिए भी मिसाल बन रहे हैं. उनका उदाहरण दिया जाता है. ये युवा किसान अन्‍य युवाओं के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं.

आपके शहर से (जयपुर)

कोटा के एमबीए किसान का 15 लाख का टर्नओवर
कोटा के कपिल जैन ने गुलाब के बिजनेस में हाथ डाला तो उसका करियर भी गुलाब-सा महक उठा. कपिल (39) ने पुणे से MBA की पढ़ाई की थी. मुंबई में नामी मल्टीनेशनल कंपनी में 17 लाख के पैकेज की अच्छी-खासी नौकरी भी थी. लेकिन पांच साल पहले वो मायानगरी मुंबई की माया से मुक्त होकर गांव बनियानी लौट आया. पिता के साथ परंपरागत खेती करने का फैसला लिया. तब रिटायर्ड साइंटिस्ट चाचा ने समझाया कि खेती में फसल खराबे की आशंका रहती है. कुछ ऐसा करो जिसमें रिस्क कम हो और बिजनेस सेट हो जाए. इसके बाद गुलाब जल के प्रोडक्शन और गुलाब की खेती में हाथ आजमाया. कोरोनाकाल की कुछ मुश्किलों के बाद बिजनेस चल निकला और अब सालाना टर्नओवर 15 लाख से ज्यादा का है. कपिल के मुताबिक इनमें मुंबई के नौकरी से ज्यादा संतुष्टि मिलती है.

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तीन सरकारी नौकरी करने के बाद बने प्रगतिशील किसान
आज के इस दौर में सरकारी नौकरी को ही सब कुछ समझने वालों को बारां जिले के धनराज लववंशी से सीख लेनी चाहिए. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि धनराज तीन सरकारी नौकरियां छोड़कर किसानी कर रहे हैं. आधुनिक इजराइली तकनीक और लो-टनल से उन्होंने अपनी सोयाबीन की फसल से 38 लाख का मुनाफा कमाया है. अकलेरा के किसान धनराज (30) का 2018 में आरपीएससी एलडीसी में सिलेक्शन हो गया. यह नौकरी ज्वाइन करने के बाद हाईकोर्ट एलडीसी में चयन हो गया. वह नौकरी छोड़कर अकलेरा कोर्ट में नौकरी कर ली. इसके बाद थर्ड ग्रेड टीचर में भी सिलेक्शन हुआ तो 2019 में झालावाड़ के प्राथमिक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया.

कभी सरकारी नौकर, अब 40 लोगों को दे रहे नौकरी
युवा धनराज के मुताबिक नौकरियों से ऊबकर खुद का काम करने का मन बनाया. पिछले साल टीचर की सरकारी नौकरी छोड़ दी. इसके बाद महाराष्ट्र में जाकर मल्टीक्रॉप फॉर्मूले और वेजिटेबल की इजराइली तकनीक सीखी. वापस आकर अपना 5 बीघा जमीन के अलावा खेत से लगती 40 बीघा जमीन लीज पर ले ली. अपने खेतों में ड्रिप सिस्टम, लो-टनल तैयार की, फर्टिलाइजर के प्लांट लगाए. पूरे 45 बीघा में इजराइली तकनीक से सोयाबीन के अलावा 10 तरह की सब्जियां बोयीं. सोयाबीन की पैदावार से मोटा मुनाफा हुआ. फिलहाल सब्जी लोकल मार्केट में भेज रहे हैं, लेकिन जल्द ही जयपुर, कोटा और दिल्ली की मंडियों में वेजिटेबल जाने को तैयार हैं. धनराज को उम्मीद है कि अगस्त-सितंबर के सीजन में टर्नओवर करीब एक करोड़ हो सकता है. कभी सरकारी नौकरी करने वाले धनराज ने अब 40 लोगों को नौकरी पर रखा हुआ है.

उधार के पैसे से खेती, अब 40 लाख की कमाई
सीकर के गांव बेरी की संतोष देवी का मूल मंत्र है कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती. राष्ट्रीय बागवानी विकास योजना और कड़ी मेहनत और लगन ने संतोष के परिवार की किस्मत पलट दी. डेढ़ दशक पहले आई इस योजना के तहत महाराष्ट्र में तैयार सिंदूरी अनार के पौधे वितरित होने थे. तब साढ़े पांच हजार में पौधे तो खरीद लिए, लेकिन पौधे लगाने और ड्रिप सिंचाई के लिए 45 हजार रूपये की जरूरत थी. पैसे नहीं थे तो 25 हजार में भैंस बेची और बाकी रिश्तेदारों से उधार लिए. संतोष और उसके पति रामकरण के पास विरासत में मिली 5 बीघा बंजर जमीन थी. दोनों ने जी-तोड़ मेहनत की और अनार-सेब व अन्य फलदार पौधे लगाए. सालों की मेहनत के बाद अब इस जमीन से सालाना 40 लाख की कमाई हो रही है. इतना ही नहीं, ये दंपती दूसरे किसानों को भी ऑर्गेनिक खेती की ट्रेनिंग दे रहे हैं.

टीचर नहीं बन सका तो बागवानी ने बनाया लखपति
दौसा जिले राजेंद्र मीणा की तमन्ना अंग्रेजी का शिक्षक बनने की थी. बीएड की और कई साल एग्जाम दिए, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. बीएड के दौरान दोस्त बने करण सिंह ने उसे बताया कि वह केसर की खेती करता है. तीन बार एग्जाम में सफलता नहीं मिली तो उसने खेती का फैसला लिया. 2018 में श्रीनगर जाकर करण सिंह से केसर के बीज लेकर आया. पौधे तो निकले लेकिन मौसम अनुकूल नहीं होने के कारण दौसा में केसर उगाने का सपना, सपना ही रह गया. इसके बाद बागवानी खेती करने की ठानी तो किस्मत पलट गई. शुरू में एक लाख रुपए खेत को बागवानी खेती के लिए व्यवस्थित करने और मल्चिंग (पौधे को प्लास्टिक शीट से कवर करना) कराने में खर्च हुए. 10 बीघा में रेड व ग्रीन अमरूद, आंवला, नींबू, बिल्वपत्र, जामुन, आम के पौधे लगाए और 4 बीघे में पपीता लगाया. अब सारा खर्च निकालने के बाद बागवानी और सब्जियों से सालाना 15 से 20 लाख रुपए कमा रहे हैं. इसके अलावा भाइयों के साथ मिलकर पशुपालन में सालाना करीब 7 लाख रुपये का दूध बेच देते हैं. राजेंद्र के मुताबिक टीचर बन भी जाता तो सरकार इतनी सैलरी कहां देती.

Tags: Agriculture department, Government jobs, Kota news, Rajasthan news

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