Supreme Court Petition under Article 32 not maintainable to challenge mandatory decisions
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने व्यवस्था दी है कि उसके अनिवार्य फैसलों को चुनौती देने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल याचिका सुनवाई के योग्य नहीं है. इसके साथ ही उसने भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामले में वर्ष 2020 में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए फैसले को बदलने के लिए दाखिल याचिका खारिज कर दी. उल्लेखनीय है कि संविधान का अनुच्छेद-32 अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए उपचारात्मक तरीकों से संबंधित है जबकि अनुच्छेद 32(1) प्रत्याभूत अधिकारों को बहाल करने के लिए शीर्ष अदालत का रुख करने के वास्ते अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से जुड़ा है.
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ उस अर्जी पर सुनवाई कर रही थी जिसमें अनुरोध किया गया था कि केंद्र को भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 की धारा- 24(2) की पुन: व्याख्या करने का निर्देश दिया जाए. याचिका में अनुरोध किया गया था घोषित किया जाए कि मार्च 2020 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए ‘फैसले तथा इससे संबंधित आदेश अब सही कानून नहीं हैं और इसलिए इसे खारिज किया जाए.’ पीठ ने तीन मार्च को दिए फैसले में कहा, ‘इस अदालत के बाध्यकारी आदेश को चुनौती देने के लिए संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. इसलिए हम इस याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हैं और याचिका खारिज की जाती है.’
अदालत ने अधिनियम की धारा-24 की भी व्याख्या की
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी इस पीठ के सदस्य थे. गौरतलब है कि वर्ष 2020 में संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि ‘भूमि अर्जन,पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013’ के तहत भूमि अधिग्रहण विवाद और भू मालिकों को उचित मुआवजे को लेकर किसी विवाद की सुनवाई दोबारा नहीं हो सकती अगर पूरी प्रक्रिया एक जनवरी 2014 से पहले पूरी हो चुकी है. अदालत ने अधिनियम की धारा-24 की भी व्याख्या की क्योंकि शीर्ष अदालत की अलग-अलग पीठों ने इस मुद्दे पर दो विरोधाभासी फैसले दिए थे. अधिनियम की धारा-24 में बताया गया है कि किन परिस्थितियों में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को शून्य माना जाएगा.
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Tags: Petition in Supreme Court, Supreme Court, सुप्रीम कोर्ट
FIRST PUBLISHED : March 09, 2023, 18:49 IST