क्या है इंडियन स्टैंडर्ड टाइम, पहले देश में थे तीन टाइम जोन, क्यों इन्हें किया गया एक
हाइलाइट्स
आजादी से पहले भारत में थे दो टाइम जोन बांबे और कोलकाता, अंग्रेज सरकार के कामकाज कोलकाता जोन के हिसाब से होते थे
वैसे जब अंग्रेज भारत में आए तो उन्होंने सबसे पहले मद्रास टाइम जोन बनाया
जब आजादी के समय टाइम जोन एक किया जा रहा था तब विवाद भी हुआ जो अब भी बरकरार
मैं समय हूं…मैं कभी टिकता नहीं..मैं कभी रुकता नहीं. किसी ने मुझे समझने के लिए सूरज की तरफ देखा, तो किसी ने चांद की ओर. किसी ने तारों की तरफ. धूप छांव पर नजर रखकर तो दिन-रात की चाल से मुझे समझने की कोशिश होती रही है. भारत ने सदियों पहले से ये कोशिश शुरू की. तकरीबन दो सदी पहले ब्रिटिश राज में भारत को समय की एक व्यवस्था मिली. इंडियन स्टैंडर्ड टाइम जैसा शब्द सामने आया. पहले बम्बई, मद्रास और कलकत्ता के टाइम ज़ोन प्रचलित थे.
भारत को आज़ादी मिलने के तुरंत बाद 01 सितंबर 1947 से पूरे देश के लिए एक समय ज़ोन चुना गया, जिसे आईएसटी कहा गया. यानि इंडियन स्टैंडर्ड टाइम. ये दुनिया के कॉर्डिनेटेड समय (यानी UTC) के हिसाब से +05:30 माना गया यानी साढ़े पांच घंटे आगे वाला टाइम ज़ोन.
जब ये तय हुआ तो एक समस्या और पैदा हो गई कि पूर्व से पश्चिम तक भारत की सीमा करीब 2933 किलोमीटर की थी, तो एक टाइम ज़ोन कैसे संभव होगा? असम और कच्छ तक समय की समानता कैसे होगी. तब काफी उलझा देने वाली बहसें समय और भारतीय स्टैंडर्ड टाइम को लेकर हुईं.
हर देश का अपना टाइम जोन होता है. कुछ देशों के कई टाइम जोन भी होते हैं. (न्यूज18)
बॉम्बे टाइम
आज़ादी से पहले भारत में समय को दो ज़ोन के हिसाब से समझा जाता था, जिनमें से एक था बॉम्बे टाइम ज़ोन. अंग्रेज़ों ने 1884 में इस टाइम ज़ोन को तय किया था जब अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टाइम ज़ोन तय किए जाने वाली बैठक हुई थी. ग्रीनविच मीनटाइम यानी जीएमटी से चार घंटे 51 मिनट आगे का टाइम ज़ोन बॉम्बे टाइम था. फिर 1906 में जब आईएसटी का प्रस्ताव ब्रिटिश राज में ही आया, तब बॉम्बे टाइम की व्यवस्था को बचाने के लिए फिरोज़शाह मेहता ने पुरज़ोर वकालत थी. बॉम्बे टाइम बचा रहा.
कलकत्ता टाइम
साल 1884 वाली बैठक में ही भारत में समय के दो ज़ोन तय किए गए थे, जिनमें से एक था कलकत्ता टाइम था. जीएमटी से 5 घंटे 30 मिनट और 21 सेकंड आगे के टाइम ज़ोन को कलकत्ता टाइम माना गया था. 1906 में आईएसटी का प्रस्ताव जब नाकाम रहा, तो कलकत्ता टाइम भी चलता रहा. कहते हैं कि अंग्रेज़ खगोलीय और भौगोलिक घटनाओं के दस्तावेज़ीकरण में कलकत्ता टाइम का ही इस्तेमाल करते थे. हालांकि बांबे और कलकत्ता टाइम जोन से पहले इस देश में मद्रास टाइम जोन भी था.
पड़ोसी देशों के टाइम ज़ोन की तुलना में भारतीय स्टैंडर्ड टाइम ज़ोन.(wiki commons)
मद्रास टाइम
भारत में ब्रितानी ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले खगोलशास्त्री जॉन गोल्डिंघम ने 1802 में मद्रास टाइम ज़ोन की व्यवस्था बनाई थी. जीएमटी से 5 घंटे 21 मिनट और 14 सेकंड के आगे वाले इस टाइम ज़ोन को बाद में रेलवे ने भी अपनाया था तो इसे रेलवे टाइम भी कहा जाने लगा था. बॉम्बे और कलकत्ता टाइम ज़ोन के बावजूद रेलवे ने इसे अपनाया था. हालांकि 1884 के बाद से इसकी वैधता खत्म हो चुकी थी.
फिर जब 1947 में आईएसटी की व्यवस्था हुई तो मद्रास में बनी नक्षत्रशाला का प्रयागराज ज़िले में तबादला किया गया. भारत ने तब पूरे देश में समय का यानि टाइम जोन का एकीकरण कर दिया. हालांकि इससे कई तरह के टाइम जोन विवाद भी पैदा हुए.
टाइम ज़ोन विवाद
भारत में दो या दो से ज़्यादा टाइम ज़ोन की चर्चा हर वक्त हुआ करती थी लेकिन चीन की तरह फैली सीमाओं के बावजूद भारत ने भी एक ही टाइम ज़ोन रखने पर ज़ोर दिया. 80 के दशक में शोधकर्ताओं ने जब दो टाइम ज़ोन का प्रस्ताव रखा तो कहा गया कि इससे ब्रिटिश राज की व्यवस्था लौटेगी. फिर 2004 में भी सरकार ने इस तरह की व्यवस्था को नकारा.
क्या वास्तव में कच्छ से सुदूर असम में समय का अंतर होता है
गुजरात के कच्छ के रण में और उत्तरपूर्वी सीमा के किसी असमिया इलाके में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय में दो घंटे से ज़्यादा का अंतर रहता है. इसी वजह से भारत के टाइम जोन में फिर बंटवारे की आवाज भी उठती है. हालांकि ये पेचीदा है. इसे अपनाने से कई तरह की जटिलताएं समय को लेकर पैदा होने लगेंगी.
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FIRST PUBLISHED : December 13, 2022, 14:52 IST