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क्या है ‘आधे का आधा’ की रणनीति, जिसके दम पर 2024 में बीजेपी को हराने की सोच रहा विपक्षी

नई दिल्ली. गैर-भाजपा, गैर-एनडीए दलों ने 2024 के लोकसभा चुनाव (2024 Lok Sabha Election) के लिए ‘आधे के आधा’ फॉर्मूले पर बात करना शुरू कर दिया है. इसका मतलब है कि विपक्षी दल लोकसभा में बहुमत के लिए जरूरी 273 सीटों का आधा हिस्सा अपने दम पर जीतने की कोशिश में हैं. इस दौरान कांग्रेस से उम्मीद की जा रही कि वह दूसरा ‘आधे के आधा’ हिस्से में बड़ी जीत दर्ज करेगी. खास बात यह है कि केरल, पंजाब, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में कांग्रेस (Congress) की स्थिति मजबूत है और साथ ही वे यहां बीजेपी से सीधी टक्कर में भी है.

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, मराठा क्षत्रप शरद पवार, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा समेत राजनीति के कई दिग्गज रणनीति तैयार करने के लिए मुलाकात कर रहे हैं. रिकॉर्ड के लिए, ‘कांग्रेस का मुद्दा’ और ‘प्रधानमंत्री उम्मीदवार’ के सवाल को फिलहाल बातचीत में शामिल नहीं किया जा रहा है. दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो एक बार महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश आदि जैसे राज्यों में पवार, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, लालू-तेजस्वी यादव, एमके स्टालिन, एचडी कुमारस्वामी, एन चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश यादव साथ आ जाएं, तो कांग्रेस के साथ समझ शुरू होगी.

प्रशांत किशोर यानी पीके और शरद पवार के कांग्रेस में ऐसे कई दोस्त हैं, जो हाईकमान को प्रभावित कर सकते हैं. यहां तक कि यह भी कहा जा रहा है कि 23 नेताओं के समूह ने ‘सही समय’ पर किसी भी बीजेपी विरोधी मोर्चे में शामिल होने के संकेत दिए हैं. अब सवाल उठता है कि सही समय क्या होगा? फिलहाल इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है, लेकिन आमतौर पर ऐसा माना जा रहा है कि यह समय पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनाव पूरा होने को कहा जा सकता है.

अगर कांग्रेस पंजाब हार जाती है, उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती है या उत्तराखंड में सत्ता वापसी करने में असफल होती है, तो पार्टी में फूट और पलायन की स्थिति असल रूप ले लेगी. जिस तरह से राहुल और सोनिया गांधी ने पंजाब और राजस्थान के सियासी संकट को संभाला है, उसे देखकर गांधी परिवार के साथ वफादारी का दावा करने के वाले कांग्रेसी नेता भी अपना धैर्य खोते जा रहे हैं. बात यहां तक पहुंच गई कि कई वर्चुअल मीटिंग्स के दौरान पार्टी के नेताओं को गालियां देने लगते थे.

18वीं लोकसभा में 100 से ज्यादा सीट के आंकड़े को लेकर कांग्रेस पर अंदर और बाहर दोनों तरफ से ‘कुछ करने’ का दबाव है. राहुल पार्टी प्रमुख का पद स्वीकारने के लिए अनिच्छुक हैं, यह स्थिति और विचित्र होती जा रही है. तेलंगाना और केरल में नए पार्टी प्रमुखों की नियुक्तियों में उनका ठप्पा लगाया जाना साफ नजर आ रहा है.

अब एक और दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस और पीके के बीच संबंधों काफी रहस्यमयी हैं. आधिकारिक रूप से कांग्रेस पीके के चुनावी प्रबंधन के साथ अपनी पहचान बनाने को लेकर अनिच्छुक है, क्योंकि पार्टी का मानना है कि दल के अंदर की गतिविधियों और खासतौर से चुनावी बातों को ‘आउटसोर्स’ नहीं किया जा सकता है.

इसी दौरान पंजाब समेत कांग्रेस के ऐसे नेताओं की कमी नहीं है, जिन्होंने पीके से मार्गदर्शन मांगा और उनके साथ ‘निजी संधियां’ तैयार की हैं. वैसे तो पीके हमेशा से गांधी परिवार को जमकर तारीफ करते हैं, लेकिन कांग्रेस के आंतरिक मुद्दों पर शांत रहते हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ आने को लेकर पीके और कांग्रेस के संबंधों पर असर पड़ेगा.

राम मंदिर जैसे मुद्दों पर कांग्रेस की वैचारिक स्पष्टता बेहद जरूरी है. आने वाले हफ्तों में उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले राहुल और प्रियंका गांधी को खुद को उदार-वामपंथी कहानियों के खिलाफ बचाना होगा. यह मुद्दा बहुसंख्यक समुदाय को अलग-थलग भी कर सकता है. ठीक इसी दौरान हिंदू भावना पर ज्यादा निर्भर रहने के चलते भी पार्टी को दूसरे राज्यों में मुश्किल हो सकती है, जहां हिंदू-मुस्लिम मुद्दा हिंदी राज्य जितना अहम नहीं है.

2024 के चुनाव विपरीत शैली में लड़े जाने के लिए तैयार हैं. अगर टीम मोदी प्रधानमंत्री की छवि, बड़े प्रोजेक्ट्स, बड़े टीकाकरण कार्यक्रम के संदर्भ में कोविड-19 प्रबंधन के मुद्दे, कूटनीतिक मोर्चे पर उपलब्धियां और राम मंदिर जैसे भावनात्मक मुद्दे का इस्तेमाल करने की तैयार में है, तो वहीं कांग्रेस और उनके सहयोगी उन राज्यों में बड़ी जंग के लिए तैयार हैं, जहां क्षेत्रीय पार्टियों का बोलबाला है.

ऐसे में अगर ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, एमके स्टालिन, नवीन पटनायक, एचडी कुमारस्वामी, एन चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश यादव, आदि मिलकर संसदीय सीटों का बड़ा हिस्सा जीतने में सफलता हासिल कर लेते हैं, तो कांग्रेस के पास राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढञ, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, महाराष्ट्र असम और दूसरे उत्तर-पूर्वी राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करने का जिम्मा होगा, जहां वे बीजेपी के साथ सीधी टक्कर में होंगे.

वाम दलों समेत कई गैर-एनडीए सहयोगियों को कई भारतीय राज्यों में महागठबंधन को लेकर साथ लाने पर बात कर के लिए राहुल ने सोनिया गांधी पर भरोसा जताया है. आने वाले कुछ महीने केवल कांग्रेस ही नहीं गैर-बीजेपी और गैर-एनडीए दलों के लिए अहम साबित होने वाले हैं. कांग्रेस की नेतृत्व से जुड़ी परेशानियों को खत्म करने, पंजाब में दोबारा सत्ता हासिल करने और उत्तराखंड में जीत 2024 में ‘आधे का आधा’ जीतने में मददगार हो सकती हैं. बगैर कांग्रेस के पीके, पवार, ममता, स्टालिन और अन्य लोगों की कोशिशें राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में निरर्थक रहेंगी.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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