What is community transmission how this stage defined and what changes in strategies
नई दिल्ली. देश में कोरोना की तीसरी लहर (corona virus third wave) का कहर जारी है. हर दिन 3 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं. ऐसे में INSACOG ने (Indian SARS-CoV-2 Genomics Consortium) ने अपने ताजा बुलेटिन में कहा है कि COVID-19 कम्युनिटी ट्रांसमिशन (Community transmission) स्टेज में पहुंच गया है. INSACOG केंद्र सरकार की संस्था है जो देशभर में कोरोना वायरस में भिन्नताओं की जांच करता है ताकि यह समझने मदद मिल सके कि ये वायरस कैसे फैलता है और किस तरह से विकसित होता है. हालांकि यह एक बयान से ज्यादा कुछ भी नहीं है क्योंकि महामारी (Pandemic) के इस चरण में इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ने वाला है लेकिन पहली बार सरकार ने आधिकारिक तौर पर यह घोषणा की है, इसलिए लोगों का ध्यान इस ओर गया है.
आखिर कम्युनिटी स्प्रेड का मतलब क्या है
किसी महामारी की उत्पत्ति तब होती है जब संक्रामक बीमारी की उत्पत्ति वाले स्थान को छोड़कर कोई संक्रमित व्यक्ति किसी अन्य आबादी वाले जगह पर आ जाता है. यह यात्री ही उस खास आबादी में संक्रमण फैलाने के लिए सबसे पहले जिम्मेदार होता है. महामारी के शुरुआती चरण में संक्रमण का सीधा संबंध इसी यात्री से होता है और इस यात्री से फैले अन्य लोग इसके वाहक बनते हैं. कुछ दिनों के बाद बीमारी एक-दूसरे से कई लोगों में प्रवेश कर जाती है और एक स्थिति ऐसी आती है जब यह पहचान करना मुश्किल हो जाता है बीमारी किससे किसमें फैली है. इसका नतीजा यह होता है कि मूल यात्री से संक्रमित मामला गौण हो जाता है और स्थानीय स्तर पर कौन किस व्यक्ति को संक्रमित करता है, इसका पता ही नहीं चलता. महामारी के इस दौर को कम्युनिटी ट्रांसमिशन का स्टेज माना जाता है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि संक्रमण की श्रृंखला का या चेन ऑफ इंफेक्शन का पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है. हालांकि देश, स्थान और समय के हिसाब से विभिन्न देशों में इसकी अलग-अलग परिभाषा हो सकती है.
कम्युनिटी ट्रांसमिशन से पहले तीन चरण
कम्युनिटी ट्रांसमिशन किसी महामारी का अंतिम चरण हो सकता है लेकिन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इसके पहले भी तीन चरण हैं. इसमें पहला है कोई एक्टिव केस नहीं, दूसरा है छिटपुट केस और अंतिम है कलस्टर ऑफ केसेज. अगर 28 दिनों तक नए मामलों की पहचान न हो, तो इसे नो एक्टिव केस की श्रेणी में रखा जाता है. इसके बाद अगर दो सप्ताह के दौरान बीमारी की पहचान हो रही है लेकिन इसका संबंध बाहर से संक्रमित होकर आए लोगों के साथ जुड़ रहा है तो यह दूसरी श्रेणी में है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पिछले दो सप्ताह के दौरान नए मामले आ रहे हैं लेकिन इसका जुड़ाव बाहर से आए संक्रमित लोगों के साथ नहीं हो रहा है तो यह कलस्टर ऑफ केस है यानी महामारी एक समूह तक पहुंच गई है.
क्या-क्या आता है बदलाव
शुरुआती चरण में महामारी के प्रसार को रोकने के लिए रणनीतियों में कई तरह के बदलाव महत्वपूर्ण हो जाते हैं. उदाहरण के लिए प्रारंभिक चरण में, जब केवल छिटपुट मामलों का पता चलता है, टेस्टिंग को बहुत तेजी से बढ़ा दिया जाता है और संपर्क में आए व्यक्तियों को चिन्हित करने के लिए बेहतर रणनीति का इस्तेमाल किया जाता है. फिर संक्रमित व्यक्ति को आइसोलेटेड की प्रक्रिया चलती है. इससे आबादी में वायरस ले जाने वाले लोगों की संख्या में काफी कमी आती है और संक्रमण की रफ्तार भी थमती हुई नजर आती है. हालांकि जब कम्युनिटी स्प्रेड हो जाता है तो इस तरह की रणनीतियां बहुत कम ही काम करती है. इस स्थिति में अस्पताल प्रबंधन, क्रिटिकल केयर फेसिलिटी और जीनोमिक सर्विलांस जैसी रणनीतियां ही काम करती है.
आगे की राह क्या है
भारत में कम्युनिटी स्प्रेड को घोषणा सरकार ने भले अब की हो लेकिन 2020 में बीमारी की शुरुआत से ही यहां कम्युनिटी स्प्रेड हो चुका है. विशेषज्ञों के मुताबिक INSACOG की वर्तमान घोषणा में कुछ भी नया नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि जिस रफ्तार से ओमिक्रॉन बढ़ रहा है इसमें कोई संदेह नहीं कि इसका कम्युनिटी ट्रांसमिशन हो चुका है. महामारी के इस चरण में कम्युनिटी ट्रांसमिशन पर चर्चा काफी हद तक एक अकादमिक है. वर्तमान स्थिति को देखते हुए केंद्र, राज्य या स्थानीय स्तर पर किए जा रहे उपायों में किसी प्रकार के बदलाव की संभावना शायद ही है क्योंकि सबकुछ पहले से किया जा रहा है.
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