Marital Rape Case Delhi High Court Given 10 Days To Centre For Reply
नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) में कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म (Marital Rape) को अपराध बनाने में ‘‘परिवार के मामले’’के साथ-साथ महिला के सम्मान का भी मुद्दा जुड़ा हुआ है. केंद्र ने इसके साथ ही अदालत से कहा कि उसके लिए इस मुद्दे पर तत्काल अपना रुख बताना संभव नहीं है. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने कहा कि वह ‘‘नागरिकों के साथ अन्याय’’करेंगे अगर सरकार ‘‘आधे मन से ’’ मामले पर पक्ष रखेगी.
उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि वह सभी हितधारकों से परामर्श कर अपना रुख रखने के लिए ‘‘ तर्कसंगत समय’’ दें, खासतौर पर तब जब इस बीच किसी को बहुत खतरा नहीं है. उन्होंने अदालत से कहा, ‘‘आपका आधिपत्य केवल प्रावधान की कानूनी या संवैधानिक वैधता का फैसला करना नहीं है. इसे सूक्ष्मदर्शी कोण से नहीं देखा जाना चाहिए…यहां महिला का सम्मान दांव पर है. यहां पर परिवार का मुद्दा है. कई ऐसे विचार होंगे जिनपर सरकार को विमर्श करने होंगे ताकि आपके लिए सहायक रुख तय किया जा सके.’’
जवाब देने के लिए केंद्र ने हाईकोर्ट से मांगा समय
उन्होंने कहा, “केंद्र के लिए तत्काल जवाब देना संभव नहीं होगा, खासतौर पर तब जब किसी को इस बीच कोई गंभीर खतरा नहीं होने वाला है. मैं अपना अनुरोध दोहराता हूं कि मुझे तर्कसंगत समय चाहिए.” सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि केंद्र को ‘बहुत सतर्क’ रहने की जरूरत है. उन्होंने जोर देकर कहा कि याचिकर्ताओं के तर्क और उसी तरह का रुख अदालत द्वारा नियुक्त न्याय मित्र द्वारा लिए जाने के बाद केंद्र सरकार के लिए यह “उचित नहीं होगा” कि वह अदालत को “इस मामले पर वृहद रुख” के लिए नहीं कहे.
कोर्ट ने कहा, वह इस मामले को लटकाए नहीं रख सकती
उन्होंने कहा, “मैं नहीं मानता कि यह उचित होगा कि केंद्र सरकार आप श्रीमान (यूअर लॉर्डशिप) को अन्य हितधारकों को आमंत्रित कर वृहद रुख अपनाने या संपूर्णता के आधार पर मामले पर विचार करने के लिए नहीं कहे.” उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें दुष्कर्म कानून से विवाह कानून को अलग रखने को चुनौती दी गई है. पीठ ने कहा कि वह इस मामले को लटकाए नहीं रख सकती है और अदालत मामले की सुनवाई पूरी करना चाहेगी.
न्यायधीश ने कहा, ‘‘मैं न नहीं कह रहा हूं. उन्हें (न्याय मित्र) जिरह करने दें। मैं आपको 10 दिन का समय दूंगा, लेकिन उसके बाद मेरे लिए यह कहना मुश्किल होगा कि हम सुनेंगे, हम सुनेंगे…10 दिन में मेरे पास आएं.’’
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