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Budget 2022: भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को खुद इलाज की जरूरत, क्या बजट में वित्त मंत्री दे पाएंगी मर्ज की दवा

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Budget 2022: भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को खुद इलाज की जरूरत, क्या बजट में वित्त मंत्री दे पाएंगी मर्ज की दवा

Highlights

  • भारत का वर्तमान खर्च जीडीपी का 1.2% से 1.6% है, जो अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत कम है
  • पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वास्थ्य क्षेत्र को 137% बढ़ाकर 2,34,846 करोड़ किया

Budget 2022: भारत सहित पूरी दुनिया बीते 2 साल से कोरोना महामारी का सामना कर रही है। इस बीमारी ने सिर्फ करोड़ों लोगों को बीमार और लाखों की जान ही नहीं ली है। बल्कि इस बीमारी ने भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल भी खोल दी। कोरोना की पहली दो लहरों ने बता दिया कि देश में सिर्फ अस्पतालों की ही नहीं, बल्कि डॉक्टर, नर्सों, दवाओं, आक्सीजन और मेडिकल उपकरणों की भी बेहद कमी है। 

भारत का वर्तमान खर्च जीडीपी का 1.2% से 1.6% है, जो अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत कम है, इसे बढ़ाकर अगले 7-10 वर्षों में जीडीपी के 4.5% तक करने की जरूरत है। कोरोना की आमद के बाद पेश किए गए 2021 के आम बजट में हालांकि स्वास्थ्य सेवाओं के आवंटन में काफी इजाफा भी हुआ है। पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वास्थ्य क्षेत्र को 2,34,846 करोड़ का बजट दिया। जो कि बीते बजट से 137% ज्यादा था। 

2014 के बाद से क्या है रिकॉर्ड

2014 की बात करें तो उस वक्त भारत में स्वास्थ्य पर खर्च का हिस्सा जी​डीपी के 1.2 प्रतिशत के बराबर था। इसमें 2015 और 2016 में वृद्धि आई। लेकिन 2017 से 2019 के तीन साल में यह 1.4 प्रतिशत पर स्थिर रहा। लेकिन 2020 में कोविड के बाद से सरकार इस ओर ध्यान दे रही है। 2021 के बजट तक जीडीपी में स्वास्थ्य की हिस्सेदारी बढ़कर 1.8 प्रतिशत हो गई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के अनुसार, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ने की उम्मीद है। 

वैक्सीनेशन के लिए बढ़ेगा खर्च? 

पिछले बजट की बात करें तो सरकार ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के लिए 64,000 करोड़ रुपये दिए गए थे। 35,000 करोड़ रुपये वैक्सीनेशन और हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए दिए गए थे। हालांकि यह पर्याप्त नहीं था। 2020-21 के बजट से पिछले साल के बजट में स्वास्थ्य मंत्रालय के आवंटन में 7000 करोड़ रुपये की वृद्धि की गई। 2020-21 के रिवाइज्ड एस्टिमेट को देखें तो इसमें 9.8 परसेंट की कमी कर दी गई।

राज्य पूरा खर्च नहीं कर पाते बजट

देश की जीडीपी में स्वास्थ्य सेवा का खर्च भले ही बहुत कम लगे। लेकिन राज्य सरकारों के लिए इस खर्च करना ही भारी पड़ जाता है। बीते साल अगस्त में केंद्रीय कैबिनेट ने 23 हजार 123 करोड़ रुपये का जो आपातकालीन कोविड रिस्पॉन्स पैकेज (ECRP-2) मंजूर किया था, उसका केवल 17 प्रतिशत हिस्सा ही राज्य सरकारों ने उपयोग किया है।

सरकारी योजनाओं का बुरा हाल

दरअसल, आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 ने माना कि सरकारी बजट में स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देने के मामले में भारत 189 देशों में 179वें स्थान पर है। देश में स्वास्थ्य योजनाओं के लिए बजट हर साल आवंटित होता है, लेकिन वास्तविक खर्च कहीं कम रह जाता है। 2020 के बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए बजट अनुमान 6429 करोड़ रुपये था। लेकिन बाद में संशोधित अनुमान में इसे घटाकर 3129 करोड़ रुपये कर दिया। हेल्थकेयर रिसर्च के खर्च को लगभग आधा तक घटा दिया गया। 

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