Having antibiotics like azithromycin without medical prescription can be harmful in corona cough and decrease immunity dlpg
नई दिल्ली. कोरोना की तीसरी लहर भारत में आ चुकी है. इस दौरान कोरोना संक्रमण के मामलों में रोजाना बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है. हालांकि कोरोना के लक्षणों के बहुत होने के चलते इस बार अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या काफी कम है और ज्यादातर लोग होम आइसोलेशन में ही रहकर ठीक हो रहे हैं. वहीं कोरोना के हल्के लक्षणों में सर्दी जुकाम प्रमुख होने के चलते अब लोग सामान्य सर्दी-जुकाम होने पर भी इसे कोरोना का लक्षण मानकर एहतियात बरत रहे हैं. इन सबके बीच जो एक चिंताजनक बात सामने आई है वह यह है कि सर्दी-जुकाम या असिम्टोमैटिक या माइल्ड कोरोना होने पर लोग डॉक्टरों के पास सलाह लेने नहीं जा रहे बल्कि दोस्तों या रिश्तेदारों की सलाह पर ही एंटीबायोटिक की दवाएं ले रहे हैं और इससे अच्छा महसूस कर रहे हैं लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो बिना जरूरत के इन दवाओं का सेवन बहुत नुकसानदेह हो सकता है. इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता घट सकती है.
एम्स के पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर और दिल्ली के प्राइमस सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल में जैरिएट्रिक मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ. विजय गुर्जर कहते हैं कि कोरोना महामारी के आने के बाद से लोगों ने कुछ एंटीबायोटिक जैसे आजीथ्रोमाइसिन (Azithromycin) आदि दवाओं के नाम रट लिए हैं और थोड़ा सा भी सर्दी-जुकाम या माइल्ड लक्षणों वाला कोरोना होने पर बिना कुछ सोचे-समझे दोस्तों और रिश्तेदारों को लेने की सलाह दे रहे हैं जो कि सही नहीं है. अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक लेना खतरनाक हो सकता है. डॉक्टर कहते हैं कि ऐसा करने पर ये दवाएं लाभ के बजाय नुकसान भी पहुंचा सकती हैं. ये ध्यान रखने वाली बात है कि ये कोई टॉफी नहीं है बल्कि दवाएं हैं और अगर ये बिना डॉक्टरी सलाह के ली जाएंगी तो इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने की संभावनाएं भी रहती हैं.
एंटीबायोटिक लेने में गलती कर रहे लोग
डॉ. विजय गुर्जर कहते हैं कि जब भी लोग किसी की सलाह पर ये एंटीबायोटिक्स लेते हैं तो कई गलतियां करते हैं. वे कभी भी एंटीबायोटिक का पूरा कोर्स नहीं करते हैं. कोई एक दो खुराक लेकर ही छोड़ देता है तो कुछ लोग तीन दिन ये दवाएं लेते हैं. कुछ बहुत ज्यादा करें तो 4 दिन लेते हैं या फिर एक दो दिन का गैप कर कर के लेते हैं. बहुत कम लोग एंटीबायोटिक्स का पूरा कोर्स करते हैं. जबकि इस दवा की पहली शर्त इसका पूरा कोर्स ही है जो कम से कम 5 दिन का होता है. वहीं कुछ लोग इनकी ज्यादा मात्रा भी ले डालते हैं. इसके अलावा जिन लोगों को इनकी जरूरत नहीं है लेकिन वे ये दवाएं ले रहे हैं तो इसका काफी नुकसान हो सकता है.
बिना डॉक्टरी सलाह एंटीबायोटिक लेने के नुकसान
डॉ. गुर्जर कहते हैं कि एंटीबायोटिक दवा मुख्य रूप ये शरीर में जाकर बैक्टीरिया से लड़ने और उसको खत्म करने के लिए होती है. ऐसे में अगर किसी मरीज के अंदर बैक्टीरिया पनपा नहीं हैं और उसे सिर्फ वायरल इन्फेक्शन है तो ये दवा जब शरीर में जाएगी तो फिर किससे लड़ेगी. बैक्टीरिया न होने की स्थिति में ये वायरस से तो नहीं लड़ेगी. किसी भी बीमारी में होता यह है कि सेकेंडरी बीमारी के रूप में बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं, उनके लिए एंटीबैक्टीरियल दवाओं की जरूरत पड़ती है. अगर किसी के शरीर में बैक्टीरिया है ही नहीं लेकिन एंटीबायोटिक्स ले ली हैं तो ये शरीर के रोग प्रतिरोधी तंत्र को डिस्टर्ब कर देंगी. इससे शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता यानि इम्यूनिटी कम होने लगेगी. ये सेल्स पर भी असर करेंगी. वहीं अगर कोई व्यक्ति बार बार ये दवाएं ले रहा है तो ये बैक्टीरिया रेसिस्टेंट हो जाती हैं और फिर असर भी नहीं करतीं.
एंटीबायोटिक लेने से पहले ये तीन बातें जानना जरूरी
डॉ. कहते हैं कि एंटीबायोटिक्स लेने से पहले तीन बातें जानना बेहद जरूरी है. पहली ये कि ये देखना होगा कि आपको इस दवा की जरूरत है या नहीं. इसकी जानकारी एक डॉक्टर ही दे सकता है. ऐसे में सबसे जरूरी है कि चिकित्सकीय सलाह से ये ली जाएं. दूसरी बात इसका कोर्स पूरा करना जरूरी है. इसे बीच में छोड़ना काफी खराब है. इससे नकारात्मक परिणाम ही आते हैं और ये असर करना कम कर देती हैं. तीसरी और जरूरी बात है कि इन दवाओं को कल्चर करा के देना चाहिए. जैसे अगर किसी को बल्गर या चेस्ट इन्फेक्शन के लिए देनी तो बलगम का कल्चर कराएं जिससे बैक्टीरिया की संवेदनशीलता का पता चल सकेगा और फिर उसके हिसाब से ये दवाएं दी जाएं. डॉ. कहते हैं कि अभी होता यह है कि डॉक्टर के पास जाने से पहले लोग इन्हें खा चुके होते हैं इससे कल्चर टेस्ट में भी कमी रह जाती है. इसलिए जरूरी है कि लोग इन दवाओं को खुद से या किसी की भी सलाह से न लें.
एंटीबायोटिक्स से बन जाते हैं सुपर बग
डॉ. विजय कहते हैं कि जब बिना जरूरत के ज्यादा एंटीबायोटिक्स ले ली जाती हैं तो फिर ये सुपर बग बन जाते हैं जो आजकल आईसीयू आदि में मिलते हैं. ये वे मरीज होते हैं जिनपर कोई एंटीबायोटिक्स काम नहीं करती, या फिर एक या दो दवाएं ही काम कर पाती हैं. इनके शरीर में सभी एंटीबायोटिक दवाएं बैक्टीरिया रेसिस्टेंट हो चुकी होती हैं. इसका नुकसान यह होता है कि फिर व्यक्ति को कोई इलाज नहीं मिल पाता या उसके शरीर पर कोई इलाज काम नहीं करता और उसे मरना ही पड़ता है.
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