Online Vs Offline Education Why interest of children towards education & books dying nodakm
नई दिल्ली. ऑफलाइन माध्यम से मिलने वाली शिक्षा हमारे बच्चों के जीवन में कितनी कारगर साबित होगी, इसको लेकर हम सब के मन में एक सवाल बना हुआ है. भले ही ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई हमारे बच्चों की मजबूरी हो, लेकिन हम यह महसूस कर रहे हैं कि बच्चों का शैक्षणिक विकास रुक सा गया गया है. इतना ही नहीं, बच्चों की पढ़ाई और किताबों के प्रति रुचि खत्म होती जा रही है. ऐसे में, बड़ा सवाल यह है कि ऑनलाइन और ऑफलाइन एजुकेशन के बीच ऐसा कौन सा अंतर है, जो बच्चों के मानकिस दायरे को संकुचित कर उनका चौतरफा नुकसान कर रहा है.
दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रामाशंकर कुशवाहा के अनुसार, ऑनलाइन शिक्षा कभी भी ऑफलाइन शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकती है. क्योंकि, कक्षा में अध्यापक बच्चों को सिर्फ पाठ ही नहीं पढ़ाते, बल्कि उनके मनोभाव और व्यवहार पर भी पूरा ध्यान रखते हैं. कक्षा में बच्चों को इस बात के लिए लगातार टोका जाता है कि वह कैसे बैठे हैं, वे इधर-उधर क्यों देख रहे हैं, उनका पढ़ाई में कितना ध्यान है. यानी कक्षा में बच्चों के बैठने, बोलने, सुनने और उनकी एकाग्रता पर अध्यापक का सीधा ध्यान होता है. अध्यापक और छात्रों के बीच होने वाला इस तरह का मनोवैज्ञानिक मौन संवाद सिर्फ ऑफलाइन क्लासेज में ही संभव है.
क्यों कम हो रही है बच्चों की किताबों के प्रति रुचि
डॉ. रामाशंकर कुशवाहा के अनुसार, बच्चों में रीडिंग हैबिट सबसे ज्यादा समूह में विकसित होती है. मनुष्य प्रतिस्पर्धा को समझता है और प्रतिस्पर्धा से ही सबसे ज्यादा सीखता है. ऑनलाइन एजुकेशन में बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा गायब हो जाती है. प्रतिस्पर्धा के आभाव में बच्चों में स्किल डेवलपमेंट संभव नहीं है. दरअसल, बच्चे जबतक रीडिंग हैबिट, सीटिंग हैबिट, टॉकिंग बिहेवियर मतलब बैठने का तरीका, बातचीत का तरीका विकसित नहीं कर लेता है, तबतक उसका किसी काम के प्रति लगाव नहीं आएगा. जब किसी काम या पढ़ाई के प्रति लगाव नहीं आएगा तो स्किल कैसे बनेगी.
डॉ. रामाशंकर कुशवाहा बताते हैं कि बोलना अपने आप में बड़ी स्किल है. इस स्किल को न ही कोई मोडरेट कर रहा है और न ही कोई सिखा रहा है. सारा काम घर परिवार में बैठकर हो जाए, यूट्यूब या गूगल से हो जाए, तो फिर तो दिक्कत ही नहीं है. लेकिन यह होगा नहीं, यह सब जानते हैं. ऑनलाइन एजुकेशन को कभी भी ऑफलाइन एडुकेशल का विकल्प नहीं माना जा सकता है. मजबूरी में ऑनलाइन शिक्षा ठीक है, लेकिन उसके स्वरूप और दुस्वारियों पर विचार करने की जरूरत है. क्योंकि, ऑनलाइन क्लासेज में बच्चों को पढ़ाया नही जा रहा, सिर्फ पाठ्यक्रम पूरा करने की औपचारिकता पूरी की जा रही है.
ऑनलाइन क्लासेज में गायब हो रही है भाषा की शुद्धता
दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रामाशंकर कुशवाहा के अनुसार, कक्षा में एक अध्यापक अपने छात्र-छात्राओं को पढ़ाई के इतर बहुत कुछ सिखाता है. यही बहुत कुछ बच्चों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. इसी बहुत कुछ में एक चीज है भाषा और उच्चारण में शुद्धता. कक्षा में बच्चों को बताया जाता है कि किस शब्द को कैसे बोलना है, किस शब्द में जिव्हा और होठ किस तरह हरकत करेंगे. यह सब ऑनलाइन में सीखना संभव नहीं है. भाषा को सीखने या समझने की प्रक्रिया है, सिर्फ और सिर्फ ऑफलाइन एजुकेशन में ही संभव है.
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